मेरे जीवन के अनुभूत अनुभवों को काव्यांस में प्रस्तुत करता एक छोटा सा प्रयास
में हूँ या नहीं ,टूटे आयनों में देखता हूँ
विश्वास में ही विश्वास को टूटता देखता हूँ
हैं ,था या होगा की परवान चढ़े
बर्फ में जमे अस्तित्व को नदी में देखता हूँ
नैतिकता और सत्व आज भी है मुकम्मल
इसी सोच में दूसरो की सोच बदलता देखता हूँ
"बर्फ में जमे अस्तित्व को नदी में देखता हूँ"बेहतरीन शब्दों से रची अद्भुत भावपूर्ण रचना ...बहुत बहुत बधाई नीरज
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"बर्फ में जमे अस्तित्व को नदी में देखता हूँ"
बेहतरीन शब्दों से रची अद्भुत भावपूर्ण रचना ...बहुत बहुत बधाई
नीरज
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