Friday, January 15, 2010

रास्ट्र के उन्नायक कवि श्री रमाशंकर सक्सेना


ास्ट्र की परिकल्पना मूलतः उसके अर्थ के साथ जुडी हुई एक भावनात्मक एवं ओजात्मक प्रवाह है जो मनुष्य को मनुष्य ,जाती को जाती ,राज्य को राज्य , और देस को देस के साथ जोड़ने का प्रयास करती है | 'रास्ट्र' शब्द के अर्थ को दखने का प्रयास करे तो ास्ट्र का सामान्य अर्थ जनपद ,देस, जाती,जनसमूह आदि होता है किन्तु विशाल परिप्रेक्ष्य में तो उसका अर्थ देस प्रेम की भावना को ही प्रस्तुत करता है | यही देप्रेम की भावना हिंदी के कई साहित्यकारों ने अपने साहित्य में एक कर्तव्य की तरह प्रस्तुत किया है जिनमे चंदबर्दाय ,विद्यापति ,आमिर खुसरो ,आधुनिककाल के कवि -लेखकों में भारतेंदु बाबु ,महारवीरप्रसाद द्विवेदी ,मैथिलीशरण गुप्त,रामधारी सिंह 'दिनकर ',जयशंकर प्रसाद ,सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला',माखनलालचतुर्वेदी , अज्ञेय ,शिवमंगल सिं सुमन ,आदि कवियों लेखकों का नाम लिया जाता है सन १९०० के बाद रास्ट्रीय कविता का दौर ऐसे चला मानो अम्बर से स्वयं चित्र गुप्त आकर भारत माता की गाथा लिख रहे हो | आधुनिक काल में भारतेंदु ,मेथेलीशरण गुप्त छायावाद में प्रसाद ,दिनकर,निराला ,तथा छायावादोतर काल में अज्ञेय एवं मुख्यरूप से कवि श्री रमाशंकर सक्सेना इस युग के रास्ट्र निर्माता रहे है | इन कवियों -साहित्यकारों ने भारतीय जनता में भारतीय संस्कृति -सभ्यता ,रीति -रिवाज ,रहन -सहन आदि जीवन मूल्यों से अवगत कराया है |

ओज और तेज के कवि रमाशंकर सक्सेना आम तोर पर बहुमुखी प्रतिभा के धनि थे |तरुणकाल से ही उनमे साहित्य के प्रति अधिक रूचि रही जिसके फल स्वरूप उनकी साहित्य साधना परवान चढ़ी और उनकी रचनाये विभिन्न पत्र -पत्रिकाओ (स्वतन्त्र भारत ,वीर अर्जुन ,विशाल भारत ) में स्थान पाया |कवि रमाशंकर सक्सेना अपने साहित्य में भारतीय संस्कृति -सभ्यता ,रीति -रिवाज ,रहन -सहन आदि जीवन मूल्यों आदि का चित्रण